भारतीय
समाज में दीनता और गरीबी का परिचय देने वाले भिखारियों के बिना किसी भी
शहर के रेलवे स्टेशन ,बस स्टैंड,पब्लिक पार्क,और अन्य पब्लिक प्लेसेस का
चित्र अधुरा रह जाएगा ,हमारे मंदिरों,मस्जिदों,गुरुद्वारों पर इनका जमावड़ा
लगभग हमेशा ही रहता है,विवशता ,निराशा,गरीबी,गन्दगी अपने शरीर पर लिए हुए
यह पतले,मोटे,हट्ठे-कट्ठे, रोगी,विकलांग,पूर्णांग सभी प्रकार के होते हैं.I
कई संस्थाओं के सर्वे ने यह उजागर किया है की हमारे देश की आबादी का लगभग १ प्रतिशत भिखारी हैं और गणना करने पर यह संख्या करोडो में होती है तथा १ सर्वे के अनुसार १ भिखारी प्रतिदिन १०० रुपये नकद एवं ५० रुपये का खाना व वस्त्र इत्यादि पा जाता हैI
हमारे देश में जितने भिखारी हैं उतने किसी अन्य देश में नहीं है ,विदेशी पर्यटक जब यहाँ इनको इतनी बड़ी संख्या में देखते हैं तो उनके दिमाग में हमारे देश का जो चित्र बनता है वह हमारे लिए शर्म की बात है .वह हमारे देश को भूखे-नंगों, कामचोरों व बेशर्मों का देश समझते हैं तो उनकी गलती नहीं है क्यूंकि वह जैसा देखते हैं वैसा सोचते हैं I
यह सोचने वाली बात है की देश की गरीब जनता करोड़ों भिखमंगों का बोझ उठती है ,रोज कई करोड़ रुपये का खर्च इन भिखमंगों पर होता है ,जोकि हमारे देश को किसी भी प्रकार का फायदा पहुचाने के बजाए अपराध,चारित्रिक पतन, गरीबी और बदनामी के सिवाय कुछ नहीं फैलाते I
विकलांगों को भी बिठाकर खिलाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता ,हाँ वो जो कर सकते हैं उसी काम के लिए उन्हें प्रेरित किया जाए और किसी विशेष कार्य के लिए प्रशिक्षण दिया जाए I
भीख मांगना भिखारी अपनी मज़बूरी नहीं पेशा मान चुके हैं और उन्हें इस काम में कोई शर्म नहीं आती ,अपनी गरीबी , टूटे-फूटे अंगों का प्रदर्शन एवं करुण आवाज में पुकारना ,और झूठ-मुठ में अंधे-बहरे बन जाने की अपनी मक्कारी को ये अपना व्यवसाय कौशल मानते हैं .जिसका विनाश जरुरी है I
इनका भी परिवार होता है ,बच्चे होते हैं और वह सब भी इस गंदे काम को अपनाते हैं तथा भीख मांगने के नए-नए तरीके ढूंढा करते हैं .इनमे बहुत से अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी हैं जो बच्चों को बरगला कर उठा ले जाते है तथा बड़ी बेरहमी से उनके अंग-भंग करके भीख मांगने पर विवश करते हैं I
हमारे समाज में दूसरों को तकलीफ में देखकर दया और सहानुभूति उमड़ पड़ती है ,साथ ही धर्म और इश्वर के नाम पर दान देना हम पुण्य समझते हैं और दान दे भी देते हैंI
दरअसल धर्म के नाम पर दान मांगने वाले फ़कीर और साधू होते थे जो लोकसेवा एवं अनमोल ज्ञान के बदले आपसे 1 समय का भोजन लेते थे ,आज के समय में वो नहीं रही और उनका स्थान भिखारियों ने ले लियाI
इस भीख की परंपरा को समाप्त कर देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करना अति आवश्यक है क्यूंकि १-१ बुराई को ख़त्म करके ही हम अपने देश को विश्व के शीर्ष स्थान पर पुनः पंहुचा सकते हैं I
कई संस्थाओं के सर्वे ने यह उजागर किया है की हमारे देश की आबादी का लगभग १ प्रतिशत भिखारी हैं और गणना करने पर यह संख्या करोडो में होती है तथा १ सर्वे के अनुसार १ भिखारी प्रतिदिन १०० रुपये नकद एवं ५० रुपये का खाना व वस्त्र इत्यादि पा जाता हैI
हमारे देश में जितने भिखारी हैं उतने किसी अन्य देश में नहीं है ,विदेशी पर्यटक जब यहाँ इनको इतनी बड़ी संख्या में देखते हैं तो उनके दिमाग में हमारे देश का जो चित्र बनता है वह हमारे लिए शर्म की बात है .वह हमारे देश को भूखे-नंगों, कामचोरों व बेशर्मों का देश समझते हैं तो उनकी गलती नहीं है क्यूंकि वह जैसा देखते हैं वैसा सोचते हैं I
यह सोचने वाली बात है की देश की गरीब जनता करोड़ों भिखमंगों का बोझ उठती है ,रोज कई करोड़ रुपये का खर्च इन भिखमंगों पर होता है ,जोकि हमारे देश को किसी भी प्रकार का फायदा पहुचाने के बजाए अपराध,चारित्रिक पतन, गरीबी और बदनामी के सिवाय कुछ नहीं फैलाते I
विकलांगों को भी बिठाकर खिलाने का कोई औचित्य समझ में नहीं आता ,हाँ वो जो कर सकते हैं उसी काम के लिए उन्हें प्रेरित किया जाए और किसी विशेष कार्य के लिए प्रशिक्षण दिया जाए I
भीख मांगना भिखारी अपनी मज़बूरी नहीं पेशा मान चुके हैं और उन्हें इस काम में कोई शर्म नहीं आती ,अपनी गरीबी , टूटे-फूटे अंगों का प्रदर्शन एवं करुण आवाज में पुकारना ,और झूठ-मुठ में अंधे-बहरे बन जाने की अपनी मक्कारी को ये अपना व्यवसाय कौशल मानते हैं .जिसका विनाश जरुरी है I
इनका भी परिवार होता है ,बच्चे होते हैं और वह सब भी इस गंदे काम को अपनाते हैं तथा भीख मांगने के नए-नए तरीके ढूंढा करते हैं .इनमे बहुत से अपराधी प्रवृत्ति के लोग भी हैं जो बच्चों को बरगला कर उठा ले जाते है तथा बड़ी बेरहमी से उनके अंग-भंग करके भीख मांगने पर विवश करते हैं I
हमारे समाज में दूसरों को तकलीफ में देखकर दया और सहानुभूति उमड़ पड़ती है ,साथ ही धर्म और इश्वर के नाम पर दान देना हम पुण्य समझते हैं और दान दे भी देते हैंI
दरअसल धर्म के नाम पर दान मांगने वाले फ़कीर और साधू होते थे जो लोकसेवा एवं अनमोल ज्ञान के बदले आपसे 1 समय का भोजन लेते थे ,आज के समय में वो नहीं रही और उनका स्थान भिखारियों ने ले लियाI
इस भीख की परंपरा को समाप्त कर देश को उन्नति के पथ पर अग्रसर करना अति आवश्यक है क्यूंकि १-१ बुराई को ख़त्म करके ही हम अपने देश को विश्व के शीर्ष स्थान पर पुनः पंहुचा सकते हैं I